ACIDITY – अम्ल रोग ke liye homeopathic दवा का उपयोग किया जाता है।
ACIDITY अम्ल रोग क्या हैः-
पेट में हाइड्रोक्लोरिक ऐसिड का उपयुक्त मात्रा से अधिक हो जाना ही’ अम्ल रोग’ ( Acidity ) कहलाता है। ऐसिड की पेट में अधिकता से भोजन गल कर सड़ने लगता है, खट्टे डकार आने लगते हैं, पेट में गैस होने लगती है, मुंह में पानी भर आता है, कलेजे में जलन होने लगती है, अपचन, कब्ज़ या दस्त की शिकायत हो जाती है। ‘अम्ल-रोग’ ke liye homeopathic दवा कार्बोवेज, सल्फ्यूरिक ऐसिड, लाईकोपोडियम, ऐसाफ़ेटिडा, अर्जेन्टम नाइट्रिकम, नैट्रम फ़ॉस, कैलकेरिया कार्ब, नक्स वोमिका, रोबिनिया, सल्फर मुख्य हैं। तो अब जानते हैं इन दवाओं को अम्ल रोग के किस परिस्थित में लिया जाता है।
(1) कार्बो वेज, 6-30-
नाभि से ऊपर के हिस्से में वायु का ऐसे भर जाना मानो पेट फूट पड़ेगा, खाने से गैस का और अधिक बनना, कमर में कपड़े का बंधान न सह सकना, हवा के सरने से राहत महसूस करना इसके लक्षण हैं में इस दवा का उपयोग किया जाता है।
(2) सल्फ्यूरिक ऐसिड, 24-30-
हनीमैन ने अम्ल-रोग में इस औषधि के देने की सलाह दी है। खट्टी कय, खट्टी डकारें, शरीर से खट्टी बू, जबर्दस्त हिचकी, खाने के बाद पेट में दर्द होने पर यह उपयोगी है में इस दवा का उपयोग किया जाता है।
(3) लाइकोपोडियम, 30-
पेट में हवा के कारण काटता हुआ दर्द, हवा से पेट में गड़गड़ाहट, पेट के निचले हिस्से में हवा का विशेष प्रकोप, डकारों तथा अपान वायु से रोगी को राहत, 3-4 बजे के बाद पेट की हवा का बढ़ना में इस दवा का उपयोग किया जाता है।
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(4) एसाफ़ेटिडा, 2-6-
हवा का पेट में भर जाना और उसका ऊपर की तरफ प्रकोप, हवा ऊपर ही जाती है, नीचे नहीं जाती; ऐसा लगता है कि हवा के ऊपर की तरफ दबाव से पेट फट जाएगा-पेट की हवा की ‘प्रतिगामी’ ‘ गति’- (Reverse peristalsis) – उल्टी गति इसके लक्षण हैं में इस दवा का उपयोग किया जाता है।
(5) अर्जेन्ट नाइट्रिकम, 3-30-
पेट में दर्द के साथ-साथ डकार आना, डकार आने के साथ आराम आना। इसमें मीठे के लिए विशेष रुचि होती है तो इस दवा का उपयोग किया जाता है।
(6) नैट्रम फ़ॉस, 3X,6X, 12X-
विचूर्ण- खट्टे डकार खट्टी कय, पेट में दर्द, हरे दस्त में इस दवा का उपयोग किया जाता है।
(7) कैलकेरिया कार्ब, 30-200-
बार-बार खट्टे डकार आना, खट्टी कय, पेट में ऐंठन, गर्म भोजन के प्रति अरुचि, न पचने वाले पदार्थों को खाने की इच्छा-कोयला, चाक, पेंसिल आदि खाने की चाह हो तो इस दवा का उपयोग किया जाता है।
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(8) नक्स वोमिका, 30-
सवेरे खाने के बाद खट्टा स्वाद तथा जी मतलाना, पेट में बोझ तथा दर्द महसूस होना, खट्टे तथा कड़वे डकार आना। खाने के कई घण्टे बाद पेट का ऐसा भारी हो जाना जैसे पेट में पत्थर पड़े हों। कय करने की इच्छा परन्तु कय न हो सकना। उत्तेजक पदार्थ खाने की इच्छा। घी के पदार्थ खाने की तीव्र इच्छा और उन्हें आसानी से पचा भी सकना। डकार मुश्किल से आना में इस दवा का उपयोग किया जाता है।
(9) रोबिनिया, 3-
पेट में हल्का-हल्का दर्द; लगातार खट्टे डकार; खासकर रात को अत्यन्त खट्टी बू की कय; पेट तथा आंतों में अत्यन्त गैस का भर जाना; गैस की वजह से दर्द। यह अम्ल-रोग की बढ़िया दवा है परन्तु इसे कई दिन तक लगातार लेना पड़ता है तो इसमें इस दवा का उपयोग किया जाता है।
(10) सल्फर, 30-
खाने के घण्टा भर बाद डकार में भोजन निकल पड़ना जिससे खट्टी बू आये, कलेजा बैठना (Sinking sensa- tion at epigastrium). में इस दवा का उपयोग किया जाता है।
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