BLOOD-PRESSURE (ARTERIO-SCLEROSIS) रक्त-चाप (धमनियों का दबाव ) में होम्योपैथ।
(क) Blood Pressure क्या है?
हृदय रक्त को ‘धमनियों’ (Arteries) में फेंकता है, और वे आगे उसे ‘केशिकाओं’ (Capillaries) में फेंकती हैं। हृदय का इस प्रकार रक्त को धमनियों और केशिकाओं में फेंकना स्वस्थ-व्यक्ति में 1 मिनट में 72 वार होता है। हृदय द्वारा रक्त के शरीर में इस धकेलने को ‘नाड़ी का चलना’ (Beating of artery) कहते हैं। हृदय को दो गतियाँ करनी पड़ती हैं। एक गति सिकुड़ने की है, दूसरी फैलने की है, ठीक इस प्रकार जैसे रबर की कुप्पी में से पानी फेंकना हो तो उसे जब सिकोड़ते हैं तब पानी बाहर जाता है, जब उसे फैलने देते हैं तब उसमें पानी आ भरता है। हृदय भी खून को शरीर में आगे फेंकता है, और आगे फेंकना लगातार बना रहे इसके लिये पीछे से फेफड़ों से शुद्ध हुए हृदय में संचित खून को खींचता भी है। परन्तु जब वह खून को आगे ‘धमनि’ (Artery) में फेंक रहा होता है तब, और जब वह पीछे से खून को ले रहा होता है तब- इन दोनों हालात में खून तो आगे धमनियों में जा ही रहा होता है। जब हृदय सिकुड़ता है और रुधिर को ‘धमनी’ (Artery) में फेंक रहा होता है तब हृदय के सिकुड़ने के कारण रुधिर के फेंकने के वेग को ‘हृद्-संकोचन’ (Systole) कहते हैं; इसके बाद हृदय जब फैलता है, तब रुधिर के फेंकने का कुछ-न-कुछ वेग तो बना ही रहता है, परन्तु कम हो जाता है, इस कम हुए वेग को जो हृदय के फैलने के कारण कम हो जाता है, ‘हृद्-प्रसारण’ (Diastole) कहते हैं। ‘हृद्- संकोचन’ (Systole) तथा ‘हृद्-प्रसारण’ (Diastole) दोनों हालत में रुधिर का ‘धमनियों’ (Arteries) में जाना- ‘वेग’ बना ही रहता है, नहीं तो मनुष्य मर ही न जाय, इस ‘वेग’ को ही ‘रुधिर का दबाव’ Blood pressure कहते हैं। आम साधारण लोग सिर्फ ‘हृद्-प्रसारण’ (Systole) को ही- जब हृदय रुधिर को नाड़ियों में जोर से फेंकने में लगा होता है- ‘ब्लड प्रेशर’ कहा करते हैं, परन्तु यह यथार्थ स्थिति नहीं है। ब्लड प्रेशर दोनों हैं- हृदय का ‘संकोचन’ (Systole) तथा हृदय का ‘प्रसारण’ (Diastole)। तो अब जानते हैं कि Blood Pressure कितना होना चाहिए और अगर वो बिगड़ा हुआ है तो उसका homeopathic medicine क्या क्या है।
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(ख) Blood Pressure कितना होना चाहिये? – एक फार्मूला
मोटे तौर पर, युवा-व्यक्ति में ‘संकोचन का दबाव’ (Systolic blood pressure) 100+ व्यक्ति की आयु का लगभग आधा होता है। उदाहरणार्थ, अगर किसी की आयु 50 साल की है तो उसका ब्लड प्रेशर (100+50 का आधा) – 125-135 के बीच में होना चाहिये। ‘संकोचन का दबाव’ Systolic blood pressure – 50 साल की आयु के व्यक्ति का 135 से काफी ऊँचा होगा, तो उसे ‘ High Blood Pressure की रुख कहा जायेगा। परन्तु ‘लो-ब्लड प्रेशर’ के लिये ‘प्रसारण के दबाव’ (Diastolic pressure) पर ध्यान देना होता है, अर्थात् खून के उस दबाव को देखना होता है जब हृदय रुधिर को बाहर धमनियों में फेंक नहीं रहा होता, परन्तु पीछे से खींच रहा होता है। इस खींचने में भी रुधिर तो कुछ-न-कुछ वेग से- भले ही वह वेग थोड़ा हो गया हो-आगे धकेला जा ही रहा होता है। ‘हृदय- प्रसारण का दबाव’ (Diastolic pressure) उतना नहीं हो सकता जितना ‘हृदय-संकोचन’ (Systolic pressure) का होता है। इन दोनों में अन्तर है। ‘संकोचन’ (Systole) तथा ‘प्रसारण’ (Diastole) में 50-60 का अन्तर होना चाहिये, ज्यादा नहीं। अगर ‘संकोचन के दबाव’ (Systolic pressure) तथा ‘प्रसारण के दबाव’ (Diastolic pressure) का अन्तर इससे ज्यादा है, तो इसे ‘लो-ब्लड प्रेशर’ की रुख (on low side) कहते हैं।
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‘संकोचन’ (Systole) तथा ‘प्रसारण’ (Diastole) का एक-दूसरे से लगभग अनुपात निम्न होना चाहिये-
‘संकोचन का दबाव’ 120 है, तो ‘प्रसारण का दबाव’ -3 : 2- अर्थात् अगर ‘संकोचन का दबाव’ 120 है, तो ‘प्रसारण का दबाव’ 80 होना चाहिये। यह 40 साल तक के युवा व्यक्ति के रक्त का दबाव है। 40 साल की आयु के व्यक्ति के ‘संकोचन’ (Systolic) अथवा ‘प्रसारण’ (Diastolic) का दबाव इस से कम होगा, तो उसे ‘लो-ब्लड प्रेशर’ कहा जायेगा, इससे ज्यादा होगा तो उसे ‘हाई ब्लड प्रेशर’ कहा जायेगा। ‘संकोचन’ (Systolic) का दबाव ऊँचा चला जाय, तो ‘प्रसारण’ (Diastolic) भी ऊँचा चला जा सकता है, ‘संकोचन’ का दबाव नीचे चला जाय, तो ‘प्रसारण’ का दबाव भी नीचे चला जा सकता है, परन्तु ऐसी स्थिति भी हो सकती है जब ‘संकोचन’ के दबाव का ‘प्रसारण’ के दबाव से किसी प्रकार का आनुपातिक सम्बन्ध न हो।
जिन फार्मूलों का हम यहाँ उल्लेख कर रहे हैं ये कोई पत्थर की लकीर नहीं हैं, इनसे ब्लड प्रेशर का सिर्फ मोटा-सा अन्दाज होता है। ब्लड प्रेशर तभी होगा जब इसके लक्षण मौजूद हों। एक ही आयु के अनेक स्वस्थ-युवाओं का और एक व्यक्ति के भिन्न-भिन्न समयों का प्रेशर भिन्न-भिन्न हो सकता है।
(ग) Blood Pressure जानने का – एक दूसरा फार्मूला
पहले आयु लिख लें एक व्यक्ति की आयु है : 50 वर्ष, आयु में से 20 घटा दें, 50 में से 20 घटे तो : 30 रहा, शेष बचे 30 का आधा करें, 30 का आधा, तो शेष : 15 रहा, इस 15 में 120 जोड़ दें 15 में 120 जोड़े तो बना : 135
इस प्रकार 50 साल के व्यक्ति का ‘संकोचन का ब्लड प्रेशर’ (Sys- tolic blood pressure) लगभग १३५ होना चाहिये, ५-१० पॉयन्ट ऊपर-नीचे का कोई फर्क नहीं माना जाता; ‘प्रसारण का ब्लड-प्रेशर’ लगभग 60-65 पॉयन्ट कम होना चाहिये, अर्थात् 135-65= 70-75 होना चाहिये, इसमें भी 5-10 पॉयन्ट ऊपर-नीचे का फर्क नहीं माना जाता। यह सब लगभग लगभग है। पकी हुई आयु में 150 सिस्टोलिक तथा 90 डायस्टोलिक को साधारण माना जाता है, इसके बाद हाई ब्लड प्रेशर का क्या प्रकार (Type) है और संख्या में कितना है- यह निम्न तालिका से स्पष्ट हो जायेगा-
क्र0सं0 |
प्रकार (Type) |
सिस्टोलिक | डायस्टोलिक |
1. |
कुछ ऊँचा (Mild) |
150 के बाद 180 तक | 90 के बाद 110 तक |
2. | साधारण ऊँचा (Moderate) | 180 के बाद 210 तक |
110 के बाद 120 तक |
3. |
साधारण तीव्र (Moderetely severe) | 210 के बाद 230 तक |
120 के बाद 130 तक |
4. | तीव्र हाई ब्लड प्रेशर (Severe B.P.) | 230 के बाद |
130 के बाद |
जैसा हमने ऊपर कहा, ब्लड प्रेशर ऊँचा भी हो सकता है, नीचा भी। इन दोनों हालत में लक्षण भिन्न-भिन्न होते हैं। उदाहरणार्थः-
(घ) हाई तथा लो Blood Pressure के लक्षण और हम आगे जानेंगे कि उनमें कौन-कौन सी homeopathic medicine ली जाती हैः-
(क) हाई-ब्लड प्रेशर High Blood Pressure – नींद न आना, माथे में, सिर की गुद्दी में, खोपड़ी पर दर्द, कभी-कभी चक्कर आना, सिर सदा भारी-भारी लगना, आलस्य छाया रहना, काम करने में अरुचि, मेहनत न कर सकना; चिड़चिड़ाना, दिल बैठना – Depression, रोगी का साँस फूलता है, वह समझता है कि दमे का आक्रमण है, परन्तु होता हाई- Blood Pressure है। या तो नींद नहीं आती या झपकियाँ आती रहती हैं। कभी-कभी नकसीर फूटती है, हृदय-प्रदेश में दर्द होता है; अंग सो जाते हैं, अंगों में सर-सराहट होती है। हृदय में भी कोई-न-कोई बीमारी होती है। आगे हम जानेंगे कि High Blood Pressure में कौन-कौन सी homeopathic medicine ली जाती है।
(ख) लो-ब्लड प्रेशर Low Blood Pressure – नब्ज़ तेज़ परन्तु धागे के समान पतली होती है, कमजोरी और थकावट की बीमारियों में ऐसा हो जाता है। सामर्थ्य से ज्यादा काम करना, कम खाना, अस्वास्थ्यकर भोजन करना, चिन्ता, कोई बड़ा ऑपरेशन, टी० बी० आदि की बीमारी से ब्लड प्रेशर नीचे चला जाता है। रोगी को सिर-दर्द होता है, चक्कर भी आते हैं।
हृदय अपने रक्त को धमनियों (Arteries) में पंप करता है। धमनियाँ रबर की तरह लचकीली हैं। जब रक्त हृदय से धक्का खाकर धमनी में जाता है, तब उस धक्के को जज्ब करने के लिये धमनी फैल जाती है। अगर धमनी में कड़ापन आ जाय, और वह रुधिर के धक्के के आने से न फैल सके तो रुधिर का वेग, उसकी गति, उसका दबाव बढ़ जाता है, इसको हम ‘हाई ब्लड प्रेशर’ कहते हैं। बचपन तथा यौवन में धमनियाँ लचकीली होती हैं इसलिये रुधिर अपनी साधारण गति से चलता है, बुढ़ापा आने तक धमनियाँ कड़ी पड़ जाती हैं और रुधिर के प्रवाह के आने पर फैलती नहीं, क्योंकि उनमें लचकीलापन नहीं रहता। कभी-कभी इन धमनियों में कैलसियम या यूरिक ऐसिड की परतें उन्हें कड़ा कर देती हैं। धमनियों का यह कड़ापन ही Blood Pressure के बढ़ जाने का कारण है, इसी कड़ेपन के कारण इसे अंग्रेजी में Arterio-sclerosis कहते हैं, जिसका अर्थ है- धमनियों की दीवाल का कड़ा पड़ जाना। इस कड़ेपन का परिणाम यह होता है कि धमनियाँ रुधिर के धक्के को, उसके वेग को जब बर्दाश्त नहीं कर सकतीं, तब कहीं से भी वे फट सकती हैं, और कभी दिमाग, कभी पेट, कभी किसी अन्य स्थान से नस फट जाने के कारण रुधिर बहने लगता है और व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। इस युग में जीवन का संघर्ष बढ़ने, चिन्ताओं की भरमार होने, खाने-पीने में लापरवाही के कारण यह रोग दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। इस रोग की होम्योपैथिक औषधियाँ है- high blood pressure में- Baryta Mur, Lachesis, Aurum Mur Natronatum, Glonoine, Belladonna, Veratrum Vir, Crataegus, Gelsemium, Natrum Mur and Arsenicum alb और low blood pressure में- Conium, Abies Nigra, Digitalis, Calmia, Gelsemium, Calcarea Phos, Tuberculinum, Radium, Cactus, Acid Phos.
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(ङ) High Blood Pressure (HYPERTENSION) में homeopathic medicine
(1) Baryta Mur, 6X-डॉ० ब्लेकवुड का कथन है कि जिस- किसी हालत में भी हाई ब्लड प्रेशर हो, यह औषधि रोगी को राहत पहुँचाती है। अगर गुर्दे की बीमारी या धमनियों में कैलसियम के बैठ जाने से यह रोग हो तब इससे लाभ नहीं होता। कई चिकित्सकों के मत में गुर्दे की बीमारी की वजह से यह रोग हो, तो पिकरिक ऐसिड से लाभ होता है। वैसे इस रोग की यह मुख्य औषधि है। रोगी जब रात को सोने के लिये बिस्तर परलेटता है, तब भयंकर सिर-दर्द होने लगता है। यह औषधि वृद्ध-पुरुषों की इस शिकायत में बहुत काम की है। अगर सिस्टोलिक- प्रेशर (Systolic pressure) ऊँचा हो, और डायोस्टोलिक प्रेशर (Di- astolic pressure) नीचा हो, तब यह विशेष उपयोगी है। ३, ६ तथा ३० में से किसी शक्ति का देर तक प्रयोग करना चाहिये।
(2) Lachesis, 1M-यह भी इस रोग में मुख्य औषधि है। रोगी सोकर उठने पर बहुत परेशान होता है। हर रोग में सोने के बाद रोग का बढ़ना लैकेसिस की प्रसिद्ध ‘प्रकृति’ (Modality) है। रोगी सोने से ही डरने लगता है, क्योंकि वह देखता है कि सोने के बाद उसकी तकलीफ बढ़ जाती है। तंग कपड़ा नहीं पहन सकता। गले में टाई तथा कमर कस कर कपड़ा बाँधना बर्दाश्त नहीं होता। सबसे पहले इसी औषधि का प्रयोग करके देखना चाहिये। अनेक रोगी इसी से ठीक हो जाते हैं, परन्तु लक्षणों पर ध्यान देना जरूरी है।
(3) Aurum Mur Natronatum, 24, 3X तथा aurum met – 30-डॉ० बोरिक लिखते हैं कि ‘स्नायु-संस्थान’ (Nervous system) के उत्तेजित या अशान्त हो जाने से अगर ब्लड प्रेशर हो जाए, तो इस औषधि से लाभ होता है। चढ़ाई पर थोड़ा-सा भी चढ़ते हुए व्यक्ति ऐसा अनुभव करता है कि अगर ठहर कर आराम न करे, तो छाती फूट कर खून बह जायेगा। कुछ भी परिश्रम करने पर व्यक्ति को छाती में एकदम बोझ- सा अनुभव होता है। ऑरम मेट, 30 से भी ब्लड प्रेशर में लाभ होता है, परन्तु 30 शक्ति ही देनी चाहिए।
(4) Glonoine, 6, 30- सारे शरीर में नाड़ी का धक-धक अनुभव होना, अंगुलियों के किनारों तक हृदय की धड़कन महसूस होना, ऐसा लगना कि खून सिर में चढ़ा जा रहा है, हृदय में चला जा रहा है। सूर्य की गर्मी से सिर-दर्द होने लगना, सीधा बैठने पर चक्कर आ जाना, सिर-माथे की धमनियों का उभर आना, सिर-दर्द, हृदय में दर्द आदि इसके लक्षण हैं। यह भी बहुत उपयोगी औषधि है।
(5) Belladonna – 30 – (कई बार दोहराना पड़ता है) रोगी का चेहरा तमतमाने लगता है, लाल हो जाता है, आँखें उभर आती हैं, गले की नसें तपकने लगती हैं, मन उत्तेजित हो जाता है, मुंह तथा गला सूखने लगता है, परन्तु रोगी पानी पीना नहीं चाहता; स्नायुओं में दर्द झट से आता और झट से चला जाता है। हाई ब्लड प्रेशर में यह भी कम महत्त्व की औषधि नहीं है।
(6) Veratrum Vir, 6X तथा Crataegus का मूल-अर्क– जर्मन टाउन होम्योपैथिक सोसाइटी की मार्च 1972 की सभा में डॉ० रेमांड सीडल ने कहा कि अगर रक्त का ‘प्रसारण का दबाव’ (Diastolic pressure) कर करना हो, तो Veratrum Vir, 6X बहुत उपयोगी है, अगर ‘संकोचन का दबाव’ (Systolic pressure) कम करना हो, तो Crataegus मूल-अर्क की 10 बूंद दिन में दो बार थोड़े से पानी में देने से बहुत लाभ होता है। बोरिक के मैटीरिया मैडिका में लिखा है कि homeopathic medicine में Veratrum Vir तथा डायस्टोलिक दोनों प्रकार के Blood Pressure को कम कर देता है।
(7) Gelsemium, 1M – अगर किसी अशुभ समाचार को सुनने से व्यक्ति को मानसिक आघात (Shock) पहुँचा हो, और उससे ब्लड- प्रेशर बढ़ गया हो, तो इस ओषधि से लाभ होता है। इसके लक्षण हैं- सिर-दर्द, माथे में भार, माथा सुन्न, सिर की गुद्दी में दर्द, तन्द्राभाव, आलस्य।
(8) Natrum Mur, 20-जिन लोगों में नमक अधिक खाने की चाह होती है, और सदा चिन्ता किया करते हैं या क्रोध को दिल में दबाये रहते हैं, उनके ब्लड प्रेशर को कम करने के लिये यह सर्वोत्तम औषधि है।
(9) Arsenicum alb, 30 – ब्लड प्रेशर के साथ बहुत बेचैनी हो, आँखें फूली हुई और पैर सूजे हुए हों, साँस में दिक्कत महसूस हो, रात को बिस्तर में लेटने से दम घुटता हो, सीढ़ियों पर ऊपर चढ़ने से साँस की दिक्कत बढ़ जाती हो- तब इसका प्रयोग करना चाहिये।
(10) Crataegus मूल-अर्क- हाई ब्लड प्रेशर धमनियों (Arter- ies) के कड़ा पड़ जाने के कारण होता है। उनमें कैलसियम के जमा हो जाने के कारण धमनियों का कड़ापन (Arterio-sclerosis) हो जाता है। यह औषधि धमनियों का कड़ापन कर देने वाले तत्त्वों को घोल देती है, इसलिये ब्लड प्रेशर की यह उत्तम औषधि है। इसके 5-10 बूंद प्रति 8 घण्टे लगातार लेते रहने चाहियें। यह हृदय को बल देने वाली (Heart tonic) औषधि है। देर तक इस्तेमाल करना पड़ता है। जब इसका असर हो जाए, तब बन्द कर देनी चाहिये।
(11) Acid Phos, 1x, 30, 200- अगर स्नायु-संस्थान (Ner-vous system) की कमजोरी के कारण उच्च अथवा निम्न ब्लड प्रेशर हो, तो इस औषधि का प्रयोग करना चाहिये, यह स्नायु-संस्थान को बल देकर ब्लड प्रेशर हो, तो इस औषधि का प्रयोग करना चाहिये, यह स्नायु- संस्थान को बल देकर ब्लड प्रेशर को दूर कर देती है।
(12) Plumbum, 3, 30 डॉ० डौन्नर का कथन है कि हाई-ब्लड- प्रेशर में वे इस औषधि को सदा उच्च शक्ति में देकर लाभ उठाते रहे हैं।
(च) Low Blood Pressure (HYPOTENSION) में homeopathic medicine
(1) Conium, 200 – इस औषधि का प्रभाव शरीर की ग्रन्थियों (Glands) पर है। वृद्धावस्था में ग्लैड्स सूकने लगते हैं, अतः शरीर क्षीण होने लगता है। रुधिर की कमी के कारण सब अंग कमजोर हो जाते हैं, मस्तिष्क में रुधिर नहीं पहुँचता इसलिये चक्कर आते हैं। मस्तिष्क में रुधिर की कमी को अंग्रेजी में ‘Cerebral anemia’ कहते हैं, इसी से लो- Blood Pressure हो जाता है। वृद्ध व्यक्तियों के कमजोरी के कारण लो-ब्लड- प्रेशर में यह उत्तम औषधि है। शरीर कमजोर, टांगें चल न सकें, अंग काँपें- इत्यादि इसके लक्षण हैं।
(2) Abies Nigra, 30, 200 – डॉ० बोरिक लिखते हैं कि इस औषधि में हृदय की गति मन्द होती है, रोगी हाँपता है, खाने के बाद तबीयत बिगड़ जाती है, दिल गिरा गिरा रहता है।
(3) Digitalis, 3– जिस रोग में भी दिल की कोई शिकायत हो वहाँ इस औषधि की तरफ ध्यान बरबस जाता है। ऐलोपैथी में तो इस औषधि का प्रयोग होता ही है, होम्योपैथी में भी लो-ब्लड प्रेशर में निम्न- शक्ति में यह प्रयुक्त होती है। नाड़ी कमजोर हो, अनियमित हो, बहुत ही अधिक धीमी हो, जिस्म में कहीं शोथ हो, रोगी हाँपता हो, ऐसा लगे कि साँस पूरा नहीं आ रहा, गहरा साँस लेने की इच्छा बनी रहे-ऐसे Low Blood Pressure में इस homeopathic medicine का प्रयोग करना चाहिये। इसके मुख्य लक्षण हैं- बहुत कमजोर, धीमी नाड़ी, कभी-कभी ऐसा लगे कि नाड़ी ठहर गई है, कमजोर नाड़ी के होते हुए भी जरा-सी हरकत से नाड़ी तेज चलने लगे।
(4) Calmia, 6- इसकी भी डिजिटेलिस की तरह नाड़ी बहुत धीमी होती है, धीमी परन्तु किसी तरह की तेज हरकत से, जीने पर चढ़ने- उतरने से दिल में धड़कन और घबराहट पैदा हो जाती है, रोगी हाँपने लगता है, साँस तेज चलने लगता है। हृदय की धड़कन, हाँपना, वात-रोग (Rheumatism) से पीड़ित होना और रोग के मूल में आतशक होना- इनके कारण लो-ब्लड प्रेशर हो, तो इस औषधि का ही क्षेत्र समझना चाहिये।
(5) Gelsemium, 1, 3, 30- सुस्ती, आलस्य, बेपरवाही, अपनी बीमारी के प्रति भी लापरवाह। भय, उत्तेजनापूर्ण समाचार आदि उद्वेगों से कोई शारीरिक रोग हो जाए-लो-ब्लड प्रेशर आदि- सिर की गुद्दी से चक्कर उठे, सिर भारी हो, आँख की पलकें भारी प्रतीत हों, कनपटियों से दर्द चलकर कानों तथा नाक तक पहुँचे, ऐसा लगे कि अगर रोगी हरकत नहीं करता रहेगा तो दिल चलना बन्द हो जायेगा, नाड़ी धीमी परन्तु जरा- सी हरकत से तेज हो जाए- इन लक्षणों पर Low Blood Pressure की अच्छी homeopathic medicine है। सुस्ती आलस्य इसमें मुख्य हैं।
(6) Calcarea Phos, 3X, 30 – शक्तिहीन, निःसत्व, थके- मान्दे मरीज़ या ऐसे युवक जो झट-झट लम्बे बढ़ते जाते हैं। ऐसों के लो- ब्लड प्रेशर के लिये यह उपयुक्त औषधि है।
(7) Radium, 12x, 30– लो ब्लड प्रेशर में चक्कर आना, सारे शरीर में दर्द होना, बेचैनी, चलने-फिरने से आराम, सिर के पीछे, सिर की चोटी पर सिर का भारी रहना।
(8) cactus grandiflorus, मूल-अर्क, 3 -लो-ब्लड प्रेशर में यह भी अच्छी औषधि है। रोगी खिन्न-चित्त, उदास, चुपचाप रहता है, मिजाज बिगड़ा रहता है, परेशान रहता है। खाने का समय निकल जाए, तो फिर सिर-दर्द होने लगता है, मूर्धा पर बोझ बना रहता है। ऐसा लगता है मानो सिर चिमटे से जकड़ा पड़ा है।
(9 ) avena sativa, मूल-अर्क– इस औषधि के 10-10 बूंद-बूंद दिन में 3-4 बार लेने से मस्तिष्क को ताकत मिलती है और लो- ब्लड प्रेशर का कष्ट कम हो जाता है।
(10) Cactus, मूल-अर्क– इस औषधि का उल्लेख हम हाई Blood Pressure में भी कर आये हैं। अगर हृदय की कमजोरी के कारण लो- ब्लड-प्रेशर हो, तो यह हृदय को ताकत पहुँचा कर लो-प्रेशर के कष्ट को दूर कर देती है। मुख्य तौर पर यह हृदय की औषधि है। इसके विषय में डॉ० ड्यूई लिखते हैं कि जब हृदय का कार्य कमजोर हो जाए, अनियमित हो जाए, नाड़ी धीमी हो, बीच-बीच में कोई बीट छोड़ जाए, ऐसा लगे कि हृदय का चलना बन्द हो गया, तब उपयोगी है। हृदय के कष्ट को सामयिक तौर पर दूर करने के लिए Digitalis की अपेक्षा इस homeopathic medicine पर अधिक भरोसा किया जा सकता है।
(11) एक अनुभूत आयुर्वेदिक नुसखा- लो-ब्लड प्रेशर के लिये हम यहाँ एक अनुभूत आयुर्वेदिक उपचार दे रहे हैं, जिससे अनेक रोगियों को लाभ हुआ हैः-
I. सौंफ, आधा भुना हुआ – 06 ग्राम
II. गुलाब के फूल – 06 ग्राम
III. बनफ़शे के फूल – 06 ग्राम
IV. कलवंजी (एक प्रकार का बीज) – 06 ग्राम
V. बादाम की छिलके रहित गिरी – 12 ग्राम
VI. छोटी इलाइची के दाने – 06 ग्राम
VII. साला मिश्री – 24 ग्राम
इनको पीस कर मिलाकर रख लें और एक छोटा चम्मच गाय के दूध के साथ सुबह-शाम लें। इसके साथ पौष्टिक भोजन खायें। लो-ब्लड- प्रेशर एक महीने में जाता रहेगा।
(छ) Blood Pressure के सम्बन्ध में कुछ अन्य बातें जो आपकी जाननी चाहिए।
Blood Pressure सदा एक-सा नहीं रहता, परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता है। उदाहरणार्थ, भोजन करने के बाद जब पेट को अधिक रक्त की आवश्यकता होती है तब ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। इसी प्रकार अगर मेहनत का काम किया जाए, जब हृदय को अपने सामान्य-कार्य से अधिक काम करना पड़े, तब भी रक्त का दबाव बढ़ जाता है। मानसिक-उद्वेग का भी ब्लड प्रेशर पर प्रभाव पड़ता है। जो लोग स्वभाव से क्रोधी होते हैं, भयभीत रहते हैं, किसी चिन्ता से हर समय ग्रस्त रहते हैं, उनका रक्त का दबाव स्थिर रूप से बढ़ जाता है। अगर गुर्दे काम न करें, रक्त में से दूषित- तत्त्व मूत्र द्वारा बाहर न निकालें, तब भी यह दबाव बढ़ जाता है। मोटे, भारी-भरकम व्यक्तियों का रक्त का दबाव प्रायः बढ़ जाता है। शराब पीने वाले, मांसाहारी व्यक्ति, ऐसे लोग जो दिन को रात और रात को दिन बनाते रहते हैं, विषय-विलास में डूबे, मौज-बहार करने वाले, भोगमय जीवन बिताने वाले व्यक्ति आसानी से इसके शिकार हो जाते हैं। हद से ज्यादा खाने के शौकीन भी इसकी लपेट में आ जाते हैं। इसके अन्य कारणों में से कब्ज़ तथा स्त्रियों में गर्भावस्था है। जैसे हाई ब्लड प्रेशर से कष्ट होता है, वैसे ही लो-ब्लड प्रेशर से भी कष्ट होता है। कमजोर आदमी, पतले- दुबले, जिन्हें पूरी खुराक नसीब नहीं होती, ये लो-ब्लड प्रेशर के कष्ट भोगते हैं। उक्त कारणों के अलावा वृद्धावस्था में शरीर के क्षीण होने के साथ जब रुधिर को ले जानेवाली नाड़ियों में लचक नहीं रहती, यूरिक ऐसिड, कैलसियम आदि की। परतें नाड़ियों में जम जाती हैं, तब भी रक्त का दबाव बढ़ जाता है। हर समय भी ब्लड प्रेशर एक-सा नहीं रहता इसलिये कई बार ब्लड प्रेशर लेकर उसका मध्यमान निकालना पड़ता है।
homeopathic medicine को देते हुए इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि होम्योपैथी की औषधि बार-बार नहीं दी जाती, जब औषधि लाभ करना शुरु कर दे तब उसे दोहराया नहीं जाता, अगर एक औषधि कुछ दिन देने पर लाभ करती न दीखे, तो लक्षणों को फिर से देखकर औषधि बदल देनी चाहिये। औषधियों के आगे जो 6, 30 आदि संख्या लिखी है वह औषधि की शक्ति की सूचक है।
NOTE:- यह केवल आपकी जानकारी के लिए है, बाकि अगर आपको भी Blood Pressure से संबंधित दिक्कते हैं तो आप नजदिकी हेम्योपैथ के चिकित्सक से दिखवाकर homeopathic medicine ले सकते हैं।
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