Jaundice, या पीलिया, एक आम समस्या है जो किसी भी उम्र में किसी को भी हो सकती है। यह एक रोग नहीं है, बल्कि यह अन्य समस्याओं का एक संकेत हो सकता है। लेकिन, इसके लक्षणों को समझना और सही समय पर उपचार करवाना महत्वपूर्ण होता है। इस लेख में, हम जानेंगे कि जॉन्डिस क्या है, इसके कारण क्या हैं, लक्षण क्या हैं, और इसका उपचार और रोकथाम कैसे किया जा सकता है।
जॉन्डिस क्या है? (definition of jaundice in hindi)
Jaundice (या पीलिया) एक बिमारी है जो पीले रंग के त्वचा, आंखों और मुंह की वजह से पहचानी जाती है। यह एक प्रकार का जिगर की बीमारी होती है, जिसमें बिलीरुबिन नामक रंग का जीवनु शरीर में बढ़ जाता है। जिगर बिलीरुबिन को फिल्टर करके बाहर निकालता है, लेकिन किसी कारणवश यह प्रक्रिया बाधित हो जाती है और बिलीरुबिन शरीर में जमा हो जाता है, जिससे त्वचा, आंखों और मुंह पीले रंग में हो जाते हैं।
जॉन्डिस के प्रकार (जॉन्डिस types)
- हेमोलिटिक जॉन्डिस: यह जॉन्डिस उन लोगों में होता है जिनके शरीर में रक्त के उत्तरोत्तर बहुत ज्यादा बिलीरुबिन बनता है, जो शरीर को बिलीरुबिन को प्रस्तुत करने के लिए जिगर से निकालने की क्षमता से अधिक होता है। यह अक्सर जिगर रोग, खून की कमी, या गर्भावस्था के दौरान हो सकता है।
- ऑटोइम्यून जॉन्डिस: यह जॉन्डिस उन लोगों में होता है जिनके शरीर में इम्यून सिस्टम अपने ही रक्त को गलती से नष्ट कर देता है, जिससे जिगर बिलीरुबिन को निकालने की क्षमता में कमी होती है।
- ऑब्स्ट्रक्टिव जॉन्डिस: यह जॉन्डिस उन लोगों में होता है जिनके गले में या जिगर के कारण यात्री वाहिकाओं में कोई बाधा होती है, जिससे बिलीरुबिन को उत्तराधिकारी अंगों तक पहुँचाने में कठिनाई होती है।
- नवजात जॉन्डिस: यह जॉन्डिस नवजात शिशुओं में देखा जाता है, जिसका कारण अक्सर शिशु के लिवर की परिप्रेक्ष्यक प्रणाली का विकास न होना हो सकता है।
पीलिया के लक्षण (jaundice symptoms piliya ke lakshan)
पीलिया (Jaundice) के लक्षण मुख्यतः यह होते हैं:
- त्वचा का पीलापन: पीलिया के मुख्य लक्षण में से एक है त्वचा का पीलापन, जिससे रंग गहरा पीला हो जाता है।
- आंखों और मुंह का पीलापन: आंखों के पुतले और अंजन के नीचे भी पीलापन दिखाई देता है। मुंह के भीतर के ऊपरी भाग का पीलापन भी हो सकता है।
- आंखों और त्वचा का अंगड़ाई होना: अधिकतर मामलों में, पीलिया के रोगी को आंखों और त्वचा का अंगड़ाई होता है।
- पेट में दर्द: कुछ मामलों में, पीलिया के रोगी को पेट में दर्द की समस्या हो सकती है।
- बुखार: गंभीर मामलों में, बुखार का अनुभव हो सकता है, जिसके कारण शरीर का तापमान बढ़ सकता है।
- थकावट: पीलिया के रोगी अक्सर थकावट का अनुभव कर सकते हैं।
- खाने में कमी: थकावट और अन्य लक्षणों के कारण, पीलिया के रोगी का भूख कम हो सकता है और वे कमजोर महसूस कर सकते हैं।
नवजात बच्चों में पीलिया (newborn jaundice symptoms)
नवजात बच्चों में पीलिया को नवजात Jaundice भी कहा जाता है, और यह एक सामान्य और सामान्य बीमारी है जो नवजात शिशुओं में देखा जाता है। यह इसलिए होता है क्योंकि नवजात शिशुओं के लिवर के कार्यक्षमता का विकास अधूरा होता है, जिससे वे बिलीरुबिन को सम्प्रेषित करने में समर्थ नहीं होते हैं।
नवजात बच्चों में पीलिया के मुख्य लक्षणों में त्वचा का पीलापन, आंखों और मुंह का पीलापन, तथा शिशु के आंखों के सफेद हिस्से का पीलापन शामिल होता है। इसके अलावा, नवजात शिशु को अक्सर असामान्य बारीक से जिम्मेदार होने के कारण ठंडे या ठंडे आसपास रखे जाने वाले पदार्थों को छूने की इच्छा हो सकती है।
अक्सर, नवजात बच्चों का पीलिया (Jaundice) अपने आप ही ठीक हो जाता है, लेकिन कई बार डॉक्टरों की देखभाल और निगरानी की आवश्यकता होती है। यह देखा जाता है कि इसका समय पर उपचार न किया जाए तो कुछ मामलों में यह बीमारी गंभीर हो सकती है, जिससे शिशु की स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है।
पीलिया के कारण? (causes of jaundice)
पीलिया ( Jaundice) कई कारणों से हो सकता है। ये कुछ मुख्य कारण हो सकते हैं:
- हेपेटाइटिस बी वायरस (Hepatitis B Virus): यह वायरस पीलिया का प्रमुख कारण है। इस वायरस के संपर्क में आने पर शिशु में पीलिया हो सकता है।
- हेपेटाइटिस ए वायरस (Hepatitis A Virus): यह भी एक प्रमुख कारण हो सकता है। जब किसी व्यक्ति को हेपेटाइटिस ए वायरस से संक्रमित होता है और उसका शिशु माँ को गर्भावस्था के दौरान पीड़ित होता है, तो शिशु में पीलिया हो सकता है।
- प्राकृतिक कारण: कुछ मामूली प्राकृतिक कारण भी हो सकते हैं जैसे कि जिगर की कोई विकृति, गर्भावस्था के दौरान माँ के शरीर में हार्मोनल परिवर्तन आदि।
- बीमारियाँ या दवाओं का प्रयोग: कई बार किसी बीमारी या दवाओं का प्रयोग भी पीलिया का कारण बन सकता है।
- खानपान की अनियमितता: अनियमित और अस्वस्थ खानपान भी पीलिया के उत्पन्न होने का कारण बन सकता है।
- जीवाणु या पारजीविक संक्रमण: कई बार जीवाणु या पारजीविक संक्रमण भी पीलिया का कारण बन सकते हैं।
पीलिया में बिलरुबीन (bilirubin level)
पीलिया (Jaundice) में बिलरुबीन का महत्व निम्नलिखित है:
- बिलरुबीन का उत्पादन: बिलरुबीन हेमोग्लोबिन के विघटन के बाद जिगर में उत्पन्न होता है। यह विघटन की प्रक्रिया के दौरान लाल रक्त कोशिकाओं (रेड ब्लड सेल्स) का अंतिम उत्पाद होता है।
- बिलिरुबिन के प्रकार: बिलरुबीन दो प्रकार का होता है: डायरेक्ट बिलरुबीन और इंडायरेक्ट बिलरुबीन।
- डायरेक्ट बिलरुबीन: यह बिलरुबीन हेपेटाइटिक सेलों या जिगर के सेलों से सीधे उत्पन्न होता है।
- इंडायरेक्ट बिलरुबीन: यह हेमोग्लोबिन के विघटन के बाद उत्पन्न होता है, और यह बाहरी जिगर के सेलों द्वारा जिगर में पहुंचता है, जहाँ यह प्रक्रिया शरीर के अन्य हिस्सों में होने वाली अन्य क्रियाओं के लिए ज़िम्मेदार होता है।
- बिलरुबीन का स्तर: नए जन्मलेन बच्चों में बिलरुबीन का स्तर 12 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर (mg/dL) से कम होना चाहिए। बच्चों में यह स्तर जन्म के बाद 2-3 दिनों में अधिकतम होता है और फिर सामान्य रेंज में आ जाता है। वयस्कों में, सामान्यतः, बिलरुबिन का स्तर 0.2 से 1.2 मिलीग्राम प्रति डेसिलीटर के बीच होता है। परंतु, पीलिया के उपचार के लिए इस स्तर को निर्धारित करने के बजाय, डॉक्टर अक्सर शरीर के सामान्य क्षमता को और अन्य संकेतों को ध्यान में रखते हुए उपचार का निर्धारण करते हैं।
- बिलरुबीन की अधिकता: यदि बिलरुबीन का स्तर अधिक होता है, तो इसे हाइपरबिलिरुबिनेमिया कहा जाता है, जिसे समय रहते उपचार किया जाना चाहिए। बिलरुबीन का समय रहते नियंत्रण न होने पर, यह शरीर के अन्य अंगों में जमा हो सकता है और गंभीर समस्याओं का कारण बन सकता है।
पीलिया की जाँच (jaundice test)
पीलिया (Jaundice) के मामले में कई जाँचें की जाती हैं। इनमें से कुछ मुख्य जाँचें निम्नलिखित हैं:
- रक्त परीक्षण (Blood Tests): यह जाँच पीलिया के लिए सबसे आम होती है। रक्त परीक्षण के द्वारा बिलीरुबिन के स्तर का मापन किया जाता है। यह जाँच बिलिरुबिन के उच्च स्तरों को निर्धारित करने में मदद करती है, जो पीलिया के लक्षण हो सकते हैं।
- जैविक परीक्षण (Liver Function Tests): यह जाँच लिवर के स्वास्थ्य को मापने के लिए की जाती है। लिवर फंक्शन टेस्ट बिलिरुबिन के स्तर के साथ-साथ अन्य लिवर एंजाइम्स की भी जाँच करती है, जो पीलिया के कारणों को निर्धारित करने में मदद कर सकती हैं।
- सोनोग्राफी (Ultrasound): यह जाँच पीलिया के कारणों को निर्धारित करने में मदद करती है, जैसे कि गल्ब्लैडर या लिवर में किसी भी समस्या की जाँच के लिए।
- संदर्भीय जाँचें (Additional Tests): कई बार डॉक्टर अन्य जाँचें भी सिफारिश करते हैं, जैसे कि CT स्कैन या MRI, जो किसी अन्य समस्या को बाहर करने में मदद कर सकती हैं।
पीलिया के बढ़ने से अन्य बीमारीः
पीलिया (Jaundice) बढ़ने से कुछ अन्य संबंधित बीमारियाँ हो सकती हैं, जैसे:
- लिवर सिरोसिस: अगर पीलिया का समय पर उपचार न किया जाए, तो यह लिवर सिरोसिस का कारण बन सकता है, जो लिवर के कार्यक्षमता को प्रभावित करता है।
- गलगंज: यह एक गंभीर लिवर रोग है जिसमें शिथिलता, चक्कर आना, बातों का समय पर समझ में न आना, और लक्षण हो सकते हैं।
- लिवर कैंसर: बड़े पीलिया के मामलों में, लिवर कैंसर का खतरा बढ़ सकता है।
- लिवर फेल्योर: अगर पीलिया का समय पर उपचार न किया जाए, तो लिवर का संकुचन हो सकता है, जो लिवर के कार्यक्षमता को पूरी तरह से बंद कर सकता है।
- गल्ब्लडर स्टोन: बिलीरुबिन के वृद्धि के कारण, गल्ब्लडर में पत्थर बनने की संभावना बढ़ सकती है।
पीलिया से बचाव (prevention of जॉन्डिस )
पीलिया (Jaundice) से बचाव करने के कुछ मुख्य तरीके निम्नलिखित हैं:
- हाइजीन का पालन: साफ-सफाई का ध्यान रखना और स्वच्छ पानी का इस्तेमाल करना बुखार के साथ साथ पीलिया से बचाव में मदद कर सकता है।
- स्वस्थ आहार: स्वस्थ और पोषणयुक्त आहार लेना पीलिया से बचाव में मदद कर सकता है। खासकर पर्याप्त प्रकार का प्रोटीन और प्रतिदिन की आवश्यकता के हिसाब से विटामिन्स और मिनरल्स लेना जरूरी है।
- हेपेटाइटिस बी का टीका: हेपेटाइटिस बी के खिलाफ वैक्सीनेशन का पालन करना एक महत्वपूर्ण तरीका है जिससे पीलिया से बचा जा सकता है।
- सावधानियाँ और संरक्षण: इन्फेक्शन के संरक्षण के लिए सुरक्षित सेक्स, शेयर किए गए संक्षिप्त सामग्री के उपयोग से बचाव किया जा सकता है।
- नशा त्याग: शराब और तंबाकू के उपयोग से बचाव करना भी पीलिया से बचाव में मदद कर सकता है।
- नियमित चेकअप: नियमित चेकअप डॉक्टर के साथ उचित समय पर जाकर अपने स्वास्थ्य की जाँच करवाना बहुत महत्वपूर्ण है। यह सहायक हो सकता है बीमारियों को समय पर पहचानने और उचित उपचार करने में।
पीलिया का उपचार (treatment of jaundice in hindi)
पीलिया (Jaundice) का उपचार विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है, लेकिन कुछ महत्वपूर्ण उपाय हैं जो आमतौर पर अपनाए जाते हैं जैसेः-
- पर्याप्त पानी पीना: पीलिया के मरीजों को पर्याप्त पानी पीने की सलाह दी जाती है, ताकि उनके शरीर से विषैले पदार्थों का निर्माण हो और वे ठीक हो सकें।
- पौष्टिक आहार: पीलिया के मरीजों को पौष्टिक आहार लेना चाहिए, जैसे कि फल, सब्जियां, दालें और पौष्टिक खाद्य पदार्थ।
- विश्राम और समय पर दवा: पीलिया के मरीजों को पूरी तरह से आराम करना चाहिए और डॉक्टर द्वारा निर्धारित दवाओं को समय पर लेना चाहिए।
- ताजा फल और सब्जियां: पीलिया के मरीजों को ताजा फल और सब्जियां खाने की सलाह दी जाती है, क्योंकि इनमें पोटैशियम और विटामिन सी होता है जो उनके लिए फायदेमंद होता है।
- बिल्कुल भी न लें: पीलिया के मरीजों को अल्कोहल, तेल, और तली हुई चीजें बिल्कुल भी नहीं लेनी चाहिए, क्योंकि ये उनकी सेहत को और बुरा कर सकते हैं।
पीलिया का घरेलू उपचार (home remedies for jaundice)
पीलिया (Jaundice) का घरेलू उपचार मुख्य रूप से निम्नलिखित होते हैं:
- गन्ने का रस और चूनाः प्रतिदिन सुबह खाली पेट गन्ने के रस में गेंहू के दाने के बराबर खाने वाला चूना मिलाकर पिने से बहुत जल्द पीलिया समाप्त हो जाती है।
- अदरक का रस: अदरक का रस दिन में कई बार पीने से पीलिया में लाभ मिलता है।
- नारियल पानी: नारियल पानी पीने से शरीर के तापमान को कम करने में मदद मिलती है और पीलिया के लक्षणों को हल करने में सहायक होता है।
- पपीता: पपीते का रस या सेवन करने से पीलिया में लाभ मिलता है। पपीता शरीर को विटामिन सी और एन्जाइम्स प्रदान करता है जो रक्त में फैली स्थानीय पीट रोग की स्थिति को सुधार सकते हैं।
- कुटकी: कुटकी पीलिया के उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है। इसके रस का सेवन पीलिया के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकता है।
- संतरे का रस: संतरे का रस पीलिया में लाभकारी होता है। यह शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है और इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है। प्रतिदिन अगर हम संतरे का रस पिते हैं तो जल्द ही पीलिया समाप्त हो जाती है।
- सब्जियों और फलों का सेवन: पीलिया में सब्जियों और फलों का सेवन करना लाभकारी होता है। खासकर, आम, अंगूर, अनार, गाजर, गोभी, लौकी, टमाटर, शिमला मिर्च, अदरक, लहसुन, आमला, आलू, ब्रोकोली, पपीता, पालक, टेंडर तोरी, अनार, और संतरे का सेवन करना लाभकारी हो सकता है।
पीलिया का होम्योपैथी उपचार
पीलिया (Jaundice) का होम्योपैथी उपचार मुख्य रूप से निम्नलिखित होते हैं:
- चेलिडोनियम: यह दवा पीलिया के लक्षणों जैसे कि पीला त्वचा, नीली आँखें, थकान और चंद्रप्रकाश की बेहतरी के लिए प्रभावी है।
- नकस वोमिका: यह दवा खून में बिलीरुबिन की स्त्रावण को बढ़ावा देती है और पीलिया के लक्षणों जैसे कि भूख की कमी, थकान, चंद्रप्रकाश की बेहतरी, और मत्तता के लिए उपयोगी है।
- ल्यूप टोक्स: यह दवा पीलिया के उपचार में उपयोगी है, जो शरीर में बिलीरुबिन के स्त्रावण को नियंत्रित करने में मदद करती है और उसे निकालती है।
- नकस इंडिका: इस दवा का उपयोग पीलिया के लक्षणों जैसे कि मस्तिष्क की कमजोरी, चंद्रप्रकाश की बेहतरी, और खाना खाने की इच्छा में वृद्धि के लिए किया जाता है।
- बरबेरिस वुल्गारिस: यह दवा पीलिया के लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद करती है, जैसे कि पीला त्वचा, बिलीरुबिन के स्त्रावण को नियंत्रित करना, और पेट में गैस की समस्या।
पीलिया का आयुर्वेदिक उपचार
पीलिया (Jaundice) का आयुर्वेदिक उपचार निम्नलिखित होते हैं:
- सर्पांड पत्री (सर्पों की पत्तियाँ): सर्पांड पत्री के पत्तों को पानी में उबालकर, उस पानी का सेवन करने से पीलिया में लाभ होता है।
- कुटकी (पिचकारी): कुटकी एक प्राकृतिक हर्बल दवा है जो पीलिया के इलाज में उपयोगी होती है। इसका सेवन करने से बिलीरुबिन के स्त्रावण में सुधार होता है।
- भूम्यामलाकी (फलों की पत्तियाँ): भूम्यामलाकी के पत्तों का सेवन करने से पीलिया में लाभ होता है। यह बिलीरुबिन के स्त्रावण को नियंत्रित करता है और लिवर को स्वस्थ रखता है।
- पित्त प्रशमन चूर्ण: यह एक आयुर्वेदिक चूर्ण है जो पीलिया के लक्षणों जैसे कि पीला त्वचा, थकान और भूख की कमी को कम करने में मदद करता है।
- आमला: आमला एक प्राकृतिक उपाय है जो पीलिया के उपचार में उपयोगी होता है। इसका सेवन करने से लिवर को मजबूती मिलती है और बिलीरुबिन के स्त्रावण में सुधार होता है।
पीलिया वाले मरीज क्या खायें (diet for jaundice)
पीलिया (Jaundice) वाले मरीज को निम्नलिखित आहार विकल्पों को अपनाने की सलाह दी जा सकती है:
- सूखे मेवे: अखरोट, काजू, बादाम, किशमिश और अंजीर, मेवे पीलिया में लाभकारी होते हैं क्योंकि ये उच्च प्रोटीन और विटामिन ए और डी का स्रोत होते हैं जो लिवर को सहायक होते हैं।
- अनार: अनार में प्राकृतिक फलाम्ल और एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं जो लिवर के स्वास्थ्य को बढ़ावा देते हैं और पीलिया के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकते हैं।
- खड़ी शाकाहारी सब्जियाँ: पलक, मेथी, शिमला मिर्च, गाजर, टमाटर, बैगन, आलू, लौकी, तोरी, और ब्रोकोली जैसी सब्जियाँ खाने से पीलिया में लाभ होता है।
- ताजा फल और सब्जियाँ: अनार, संतरा, आम, अमरूद, आलू बुखारा, अंगूर, केला, नारियल, कीवी, और अमरूद जैसे ताजे फल और सब्जियाँ खाने से शरीर को ऊर्जा मिलती है और इम्यून सिस्टम को मजबूती मिलती है।
- दालें और अनाज: मूंग दाल, अरहर दाल, मसूर दाल, चने, छोले, सोयाबीन, चावल, बाजरा, जौ, और गेहूं के दाने पीलिया में लाभकारी होते हैं।
पीलिया वाले मरीज क्या न खायें (foods to avoid in jaundice)
पीलिया (Jaundice) वाले मरीज को निम्नलिखित चीजें खाने से बचना चाहिए:
- तेलीय और भारी भोजन: तेलीय और अधिक मसालेदार खाद्य पदार्थ खाने से बचना चाहिए क्योंकि ये लिवर को और अधिक ठोस खाद्य पदार्थों को पाचनBawaseer Ka Ilaj: बवासीर का सफल इलाज के उपाय करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
- अत्यधिक मिठाई और चीनी: अत्यधिक चीनी और मिठाई का सेवन करने से बचना चाहिए क्योंकि इससे ब्लड शुगर की स्तिथि बिगड़ सकती है और लिवर को अधिक ठोस शरीर को पाचन करने के लिए प्रेरित कर सकता है।
- अत्यधिक मसालेदार और तीखे खाने: अत्यधिक मसालेदार और तीखे खाने वाले खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए क्योंकि ये लिवर के लिए अधिक आरामदायक नहीं होते हैं।
- अत्यधिक कॉफीन और अल्कोहल: अत्यधिक कॉफीन और अल्कोहल के सेवन से बचना चाहिए क्योंकि ये लिवर को अधिक दुखी कर सकते हैं और लिवर की समस्याओं को बढ़ा सकते हैं।
- अधिक तेल और मक्खन: अधिक तेल और मक्खन के उपयोग से बचना चाहिए क्योंकि ये लिवर के लिए अधिक उत्तेजक हो सकते हैं और लिवर को अधिक ठोस खाद्य पदार्थों को पाचन करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
पीलिया (Jaundice) कितने दिन में ठीक होता है
पीलिया का इलाज आमतौर पर कुछ सप्ताह या महीनों तक चलता है, लेकिन इसका समय व्यक्तिगत मामले के अनुसार भिन्न हो सकता है। आमतौर पर, पीलिया के सामान्य रूप से लक्षणों में सुधार कुछ हफ्तों में हो जाता है। लेकिन कई बार यह समय अधिक भी हो सकता है, विशेषकर जब बिमारी गंभीर हो।
पीलिया का इलाज बिलकुल पूरी तरह से ठीक होने में कुछ सप्ताह से लेकर कुछ महीने तक का समय लग सकता है। इसलिए, पीलिया के मरीजों को अपने डॉक्टर की सलाह का पालन करते हुए सभी दवाओं को सही समय तक लेना चाहिए और नियमित चेकअप करवाना चाहिए।
FAQ about jaundice पीलिया से संबंधित अकसर पूछे जाने वाले प्रश्नः
- जॉन्डिस होने का मुख्य कारण क्या है?
- जॉन्डिस का मुख्य कारण बिलीरुबिन नामक प्रोटीन के स्तर में वृद्धि होना है, जो लिवर के समस्याओं या गैलब्लैडर की कमी के कारण हो सकता है।
- पीलिया रोग किसकी कमी से होता है?
- पीलिया रोग शिशुओं में बिलीरुबिन के स्तर में वृद्धि के कारण होता है, जो जीवाणुओं या शिशु के कान की कमी के कारण हो सकता है।
- पीलिया जल्दी ठीक कैसे करें?
- पीलिया को ठीक करने के लिए, नियमित रूप से धूप में लेकर शिशु को रखना और डॉक्टर के संदेशानुसार उपचार करना महत्वपूर्ण होता है।
- पीलिया और जॉन्डिस में क्या अंतर है?
- पीलिया और जॉन्डिस दोनों ही स्थितियाँ बिलीरुबिन के वृद्धि के कारण होती हैं, हालांकि जॉन्डिस अधिक गंभीर हो सकता है और लंबे समय तक रह सकता है।
- पीलिया कितने दिनों में ठीक हो जाता है?
- सामान्य रूप से, पीलिया शिशुओं में कुछ हफ्तों में स्वतः ही ठीक हो जाता है, लेकिन यह डॉक्टर की निर्देशनानुसार निगरानी और उपचार की आवश्यकता होती है।
- जॉन्डिस में क्या खाएं क्या नहीं खाएं?
- जॉन्डिस में हेल्दी और पौष्टिक आहार खाना बेहद महत्वपूर्ण होता है। अधिक विवरण के लिए, अपने डॉक्टर से सलाह लें।
- मैं पीलिया जल्दी कैसे ठीक कर सकता हूं?
- पीलिया को ठीक करने के लिए, नियमित रूप से सूर्य की रोशनी में धूप में लेकर रखें और उपचार के लिए अपने डॉक्टर से सलाह लें।
- पीलिया से लीवर ठीक होने में कितना समय लगता है?
- पीलिया के उपचार के बाद, लीवर की स्थिति व्यक्ति के स्वास्थ्य की स्थिति और उपचार की प्रभावकारिता पर निर्भर करती है।
- नॉर्मल पीलिया कितना होना चाहिए?
- सामान्य रूप से, शिशु का बिलीरुबिन स्तर 12 मिक्रोग्राम प्रति डेसीलीटर (mg/dL) से कम होना चाहिए।
- पीलिया में दूध पी सकते हैं क्या?
- हां, पीलिया में शिशु को मात्रम दूध पिलाना उत्तम होता है, लेकिन इसे डॉक्टर की सलाह लेकर करें।
- पीलिया में कौन सा फल सबसे अच्छा होता है?
- पीलिया में फलों में सेब, आम, अंगूर आदि सेहत के लिए उत्तम होते हैं।
- पीलिया में कौन सा जूस पीना चाहिए?
- पीलिया में नारंगी, आम, सेब, पपीता आदि फलों के जूस पिए जा सकते हैं, लेकिन डॉक्टर की सलाह के बिना कोई जूस न पिएं।
इस ब्लॉग के माध्यम से, हमने पीलिया के बारे में आपको महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की है, जो इस रोग को समझने और इसका सही उपचार करवाने में मदद कर सकती है। यदि आपको इस बीमारी के लक्षण अनुभव होते हैं, तो कृपया तुरंत एक चिकित्सक से संपर्क करें।
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